गोंचा पर्व क्या है
ओडिशा में मनाया जाने वाला रथ यात्रा की तरह ही छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी रथ यात्रा निकाली जाती है जिसे गोंचा पर्व कहा जाता है । गोंचा पर्व एक दिन में सम्पन्न नहीं होता इसमें विभिन्न रस्में निभाई जाती है । रथ यात्रा के पहले दिन नेत्रोत्सव पूजा विधान किया जाता है । फिर अगले दिन रथ यात्रा निकाली जाती है जिसमें लोग भगवान जगन्नाथ , देवी सुभद्रा तथा भगवान बलभद्र के 22 विग्रहों को रथारूढ़ कर श्रद्धा से खींचते हैं जो लोगों को आकर्षित और रोमांचित करती है । रथ यात्रा के दौरान बच्चों , युवक – युवतियों द्वारा रथ को तुपकी से सलामी दी जाती है ।
यह परंपरा भगवान जगन्नाथ के प्रति लोगों का अगाध श्रद्धा प्रेम सम्मान को दर्शाता है । यह अनोखी परंपरा कहीं और देखने को नहीं मिलता यह सिर्फ बस्तर के रथ यात्रा में होता है इस परंपरा के कारण बस्तर का रथ यात्रा अन्य रथ यात्रा से अनूठा है साथ ही यह बस्तर के रथ यात्रा को अलग पहचान के साथ विश्व प्रसिद्धि दिलाता है ।
बस्तर में गोंचा पर्व की शुरुआत कैसे हुई
जिला मुख्यालय जगदलपुर में मनाया जाने वाला गोंचा पर्व की शुरुआत काकतीय / चालुक्य राजा पुरुषोत्तम देव ने 1408 में की थी । ऐसा माना जाता है कि काकतीय राजा पुरुषोत्तम देव ने राजगद्दी प्राप्त करने के बाद जगन्नाथ पुरी की पैदल तीर्थ यात्रा की थी । तब पुरी के तत्कालीन राजा गजपति ने पुरुषोत्तम देव को रथपति की उपाधि से सम्मानित किया और 16 पहियों वाला रथ भेंट किया ।
जब पुरुषोत्तम देव तीर्थ यात्रा से लौटे तो पुरी से साथ आए ब्राह्मणों के सलाह पर राजा ने मंदिर बनवाकर भगवान जगन्नाथ , भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियां स्थापित की और प्रत्येक वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को बस्तर में पुरी ( ओडिशा ) की तरह रथ खींचने ( रथ यात्रा ) की परंपरा की शुरुआत की जो कि बस्तर में गोंचा पर्व के रूप में जाना गया । गोंचा पर्व के अलावा विश्व विख्यात बस्तर दशहरा में भी रथ खींचने की परंपरा की शुरुआत की ।
आज गोंचा पर्व और बस्तर दशहरा को मनाते हुए 616 साल पूर्ण हो चुके हैं और यह परंपरा आज भी वैसे ही उत्साह के साथ बस्तर मुख्यालय जगदलपुर में मनाया जा रहा है । इस वर्ष 27 जून 2025 को मनाया जाने वाला रथ यात्रा 617 वां क्रम का होगा ।
गोंचा पर्व कब मनाया जाता है
गोंचा पर्व आषाढ़ ( जून – जुलाई ) माह शुक्ल पक्ष के द्वितीया तिथि को मनाया जाता है । यह एक दिन में संपन्न होने वाला पर्व नही है , इसमें विभिन्न विधि विधान का पालन किया जाता है । बस्तर दशहरा की तरह ही इसके लिए कुछ महीने पूर्व ही रथ निर्माण का कार्य आरंभ कर दिया जाता है और समय से पूर्व निर्माण कार्य पूरे नियमों के साथ पूर्ण कर लिया जाता है ।
फिर देवस्नान /चंदन जात्रा , अनसर , नेत्रोत्सव , रथ यात्रा , उसके बाद भगवान को पुनः मंदिर में स्थापित किया जाता है । इन सभी विधान को पूरा करते हुए रथ यात्रा संपन्न होता है । हम जिस Rath Yatra को देखने के लिए लालायित , उत्सुक होते हैं वो आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को होता है जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं और श्रद्धा से रथ को खींचते हैं ।
गोंचा पर्व में विधान या गतिविधियां
देवस्नान / चंदन जात्रा
अनसर
नेत्रोत्सव
रथ यात्रा / गोंचा पर्व
हेरापंचमी पूजा विधान
छप्पन भोग का अर्पण
बाहुड़ा गोंचा पूजा विधान
देवशयनी पूजा विधान
देवस्नान / चंदन जात्रा
देवस्नान जगदलपुर के सिरहासार चौक में स्थित जगन्नाथ मंदिर में ज्येष्ठ पूर्णिमा को होता है । भगवान शालीग्राम का चंदन , पंचामृत तथा इंद्रावती नदी के जल से अभिषेक किया जाता है और फिर पूजा कर शालीग्राम को मंदिर के गर्भगृह में प्रतिस्थापित किया जाता है ।
मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ , देवी सुभद्रा , और भगवान बलभद्र के 22 विग्रहों पर चंदन का लेप लगाया जाता है और इंद्रावती नदी के जल से स्नान कराया जाता है फिर 22 विग्रहों को जगन्नाथ मंदिर के मध्य में स्थित मुक्ति मंडप में स्थापित किया जाता है ।
गोंचा पर्व में संपूर्ण पूजा अर्चना आरण्यक ब्राह्मणों के दल द्वारा किया जाता है ।
अनसर
ज्येष्ठ कृष्ण प्रथमा से अमावस्या ( 15 दिन ) तक भगवान जगन्नाथ स्वामी बीमार पड़ते हैं जिसे अनसर कहा जाता है । इस अनसर काल के दौरान भगवान का दर्शन वर्जित होता है ।
नेत्रोत्सव
आषाढ़ शुक्ल प्रथमा को भगवान जगन्नाथ स्वामी स्वस्थ होकर भक्तो को दर्शन देते हैं । भक्तों के साथ भगवान जगन्नाथ स्वामी का आध्यात्मिक मिलन ही नेत्रोत्सव कहलाता है ।
रथ यात्रा / गोंचा पर्व
यही वो मुख्य दिन है जिसके लिए बस्तर का गोंचा पर्व विश्व प्रसिद्ध है । आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भगवान जगन्नाथ , देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र को रथारूढ़ कर यात्रा के साथ सिरहासर लाया जाता है । यात्रा के दौरान भक्तगण भगवान को बांस से बने तुपकी से सलामी देते हैं ।
तुपकी से सलामी गोंचा पर्व / Goncha festival की खास पहचान है ,यही वो दिन है जिसे देखने के लिए लोग बस्तर जिला के मुख्यालय जगदलपुर की ओर रुख करते हैं । रथ यात्रा को स्थानीय लोगों के द्वारा रदुथिया भी कहा जाता है।
हेरापंचमी पूजा विधान
छप्पन भोग का अर्पण
बाहुड़ा गोंचा पूजा विधान
देवशयनी पूजा विधान
सिरहसार भवन में भगवान 9 दिन विश्राम करते हैं उसके बाद उन्हे विधि – विधान के साथ वापस जगन्नाथ मंदिर में स्थापित किया जाता है । भगवान के विश्राम के अंतराल में भी कई विधान होते हैं जो ऊपर लिखित है ।
FAQs / अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. गोंचा पर्व कब मनाया जाता है ?
बस्तर में रथ यात्रा को गोंचा पर्व के रूप में आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है ।
2. जगदलपुर में गोंचा महोत्सव किस महीने में आयोजित किया जाता है ?
जगदलपुर में गोंचा पर्व आषाढ़ माह अर्थात जून – जुलाई महीने में आयोजित किया जाता है
3. गोंचा त्यौहार कैसे मनाया जाता है ?
गोंचा त्यौहार भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का त्यौहार है जो कि विभिन्न विधि विधान से संपन्न होता है ।
देवस्नान / चंदन जात्रा
अनसर
नेत्रोत्सव
रथ यात्रा / गोंचा पर्व
हेरापंचमी पूजा विधान
छप्पन भोग का अर्पण
बाहुड़ा गोंचा पूजा विधान
देवशयनी पूजा विधान
गोंचा पर्व का सबसे खास पहचान तुपकी से सलामी है । रथ यात्रा के दौरान लोग भगवान को बांस से बने तुपकी से सलामी देते हैं । तुपकी में एक जंगली फल जिसे पेंग कहा जाता है उसे गोली की तरह उपयोग किया जाता है । विश्व में कहीं भी ऐसी परंपरा को निभाया नही जाता , तभी तो बस्तर का रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है ।
4. तुपकी क्या है ?
बंदूक रूपी तुपकी बांस की खपची , ताड़ के पत्ते से बना होता है जिसे रंग बिरंगे पन्नी तथा कागज से सजाया भी जाता है । इस बंदूक रूपी तुपकी का उपयोग रथ यात्रा को सलामी देने के लिए किया जाता है । जिसमें गोली के रूप में पेंग / मालकांगिनी फल का प्रयोग किया जाता है ।
5. गोंचा पर्व में उपयोग होने वाला मालकांगिनी / पेंग क्या है ?
तुपकी के लिए गोली के रूप में उपयोग होने वाला पेंग छर्रानुमा ठोस जंगली लता का फल है । जो की आषाढ़ महीने में जंगलों में फलता है । इसे स्थानीय लोग पेंग कहते हैं जिसका हिंदी नाम मालकांगिनी है । इस फल का उपयोग दर्द निवारक औषधीय तेल के निर्माण में भी किया जाता है ।
6. Goncha festival date 2025
2025 में रथ यात्रा 27 जून ( आषाढ़ शुक्ल द्वितीया ) को है
7. गोंचा महोत्सव कहां मनाया जाता है ?
गोंचा महोत्सव छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर में मनाया जाता है । वैसे तो छत्तीसगढ़ के प्रमुख नगरों में भी मनाया जाता है परंतु वहां इसे रथ यात्रा कहा जाता है ।
1 thought on “रथ यात्रा : बस्तर का गोंचा पर्व Goncha festival”