भारत के हृदय में बसा छत्तीसगढ़ राज्य, संस्कृति और परंपरा का जीवंत ताना-बाना है, जिसे छत्तीसगढ़ के त्यौहारों के माध्यम से खूबसूरती से बुना गया है। राज्य में कई त्यौहार मनाए जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना अनूठा स्वाद और महत्व है ।
बस्तर लोक कला महोत्सव के पवित्र अनुष्ठानों से लेकर बस्तर दशहरा के रंगारंग उत्सव और हरेली और पोला जैसे आदिवासी त्यौहारों की खुशियों की धड़कन तक, छत्तीसगढ़ के त्यौहार इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिबिंब हैं । ये त्यौहार न केवल लोगों को एक साथ लाते हैं बल्कि प्रकृति और उसकी परंपराओं के साथ राज्य के गहरे जुड़ाव को भी प्रदर्शित करते हैं ।
छत्तीसगढ़ में त्यौहारों को जनजातीय और गैर जनजातीय दोनों तरह से देख सकते हैं । जनजातीय त्यौहार सिर्फ जनजाति क्षेत्र में मनाए जाते हैं अपितु गैर जनजातीय त्यौहार संपूर्ण छत्तीसगढ़ में मनाए जाते हैं ।
छत्तीसगढ़ के जनजातीय त्यौहार
- नवाखानी – गोंड जनजाति द्वारा
- लारुकाज – गोंड जनजाति द्वारा
- मेघनाथ पर्व – गोंड , कोरकू जनजाति द्वारा
- आमाखाई – धुरवा , परजा जनजाति द्वारा
- चैतरई – धुरवा , परजा जनजाति द्वारा
- कोरा – कोरवा जनजाति द्वारा
- बीज बोहानी – कोरवा जनजाति द्वारा
- धेरसा – कोरवा जनजाति द्वारा
- बालि परब – हल्बा, भतरा जनजाति द्वारा
- धनकुल – हल्बा, भतरा जनजाति द्वारा
- सरहुल – उरांव जनजाति द्वारा
- रतोना – बैगा जनजाति द्वारा
- करसाड़ – मुड़िया , अबुझमाड़िया जनजाति द्वारा
- करमा – बैगा, उरांव, गोंड, बिंझवार जनजाति
- भगोरिया – भील जनजाति
- गोबर बोहरानी – छिंदगढ़ विकासखंड ( सुकमा ) में
- गोंचा पर्व – बस्तर अंचल में
- दियारी – बस्तर अंचल में
- माटी तिहार – बस्तर अंचल में
- बस्तर दशहरा – बस्तर अंचल में
छत्तीसगढ़ के गैर जनजातीय त्यौहार एवं महीना
- अक्ती / अक्षय तृतीया – बैसाख महीना शुक्ल पक्ष – तृतीया को
- गंगा दशहरा – ज्येष्ठ महीना शुक्ल पक्ष – दशमी को
- हरेली – सावन अमावस्या को
- नाग पंचमी – सावन महीना शुक्ल पक्ष – पंचमी को
- कजरी – सावन महीना शुक्ल पक्ष – नवमी से पूर्णिमा तक
- भोजली – भादो महीना कृष्ण पक्ष – प्रथमा
- बहुला चौथ – भादो महीना कृष्ण पक्ष – चतुर्थी को
- हलषष्ठी /खमरछठ – भादो महीना कृष्ण पक्ष – षष्ठी को
- पोला / पोरा – भादो अमावस्या को
- हरतालिका / तीजा / अरवा तीज – भादो महीना शुक्ल पक्ष – तृतीया को
- छेरछेरा – पौष महीना पूर्णिमा को